कर्नाटक में जातिगत बहिष्कार रोकने के लिए सख्त कानून का प्रस्ताव
बेंगलुरु: कर्नाटक सरकार ने गुरुवार को विधानसभा में एक बिल पेश किया, जो खासतौर पर जाति पंचायतों की तरफ से किसी व्यक्ति या किसी की फैमिली के सामाजिक बहिष्कार पर रोक लगाता है। उसको अपराध घोषित करता है। इस बिल में नियमों का उल्लंघन करने पर 3 साल तक की सजा हो सकती है। इसके अलावा, 1 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया जाएगा। समाज कल्याण मंत्री एचसी महादेवप्पा ने एसेंबली में कर्नाटक सामाजिक बहिष्कार (रोकथाम, निषेध और निवारण) विधेयक, 2025 पेश किया, जिसमें सोशल बायकॉट के 20 तरीके बताए गए हैं। इन बहिष्कारों में किसी से लेन-देन करना, उसके लिए काम करने या बिजनेस करने से मना करना, मौके देने से इनकार करना, जिसमें सेवाओं तक पहुंच और सेवाएं के लिए कॉन्ट्रैक्ट के मौके शामिल हैं।
बिल के प्रावधान क्या-क्या हैं?
इसके अलावा, किसी भी बेस पर सामाजिक, धार्मिक या सामुदायिक कार्यक्रमों, बैठकों, सभाओं या जुलूसों में शामिल होने से रोकना, सोशल बायकॉट करना, सुविधाओं तक पहुंच से रोकना, संबंध तोड़ना, और अन्य कई बातें भी इसके तहत आती हैं। बिल में कहा गया है कि कर्नाटक में अलग-अलग समुदायों में अब भी जाति या समुदाय की पंचायतों जैसी गैर-न्यायिक संस्थाओं की तरफ से बहिष्कार, अलग-अलग सजा देना जैसे असंवैधानिक तरीके चलन में हैं, जिसकी वजह से व्यक्ति या लोगों के समूहों को सम्मान के साथ जीने में परेशानी हो रही है। इसका समुदाय के सामाजिक जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है और समाज में मनमुटाव पैदा होता है।
विधानसभा में क्यों पेश हुआ ऐसा बिल?
बिल के मुताबिक, समाज की इन बुरी और गैर-संवैधानिक प्रथाओं को खत्म करना आवश्यक है। सरकार ने गुरुवार को कर्नाटक की विधानसभा में ‘बृहत बेंगलुरु शासन (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2025’ भी पेश किया। मंत्री महादेवप्पा की तरफ से पेश किया गया यह बिल वृहत बेंगलुरु शासन अधिनियम 2024 में संशोधन का प्रपोजल करता है ताकि लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा और विधान परिषद के मेंबर्स को ‘ग्रेटर बेंगलुरु अथॉरिटी’ के सदस्यों के तौर पर शामिल किया जा सके।









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